दुनिया के सात अजूबे । Duniya Ke Saat Ajoobe : Friends, अगर आप भी दुनिया के रहस्यमई बातों को जानने एवं पढने के शौकिन हैं। तो निश्चित रूप से आज का यह Article आपके लिए है।
क्योंकि आज मैने दुनिया के सात अजूबे (Duniya Ke Saat Ajoobe) के बारे में लिखी हूं। आज इस आर्टिकल के माध्यम से मैं आप सबको दुनिया के सात अजूबा का नाम (Duniya ke 7 Ajuba Name) और इससे रिलेटेड फैक्ट्स बताउंगी। उम्मीद करती हूँ, कि आज का यह Article आपके लिए उपयोगी होगा।
तो चलिए चलते हैं अपनी मुद्दों की ओर और जानते हैं- दुनिया के सात अजूबों के बारे (About Seven Wonders of the World) में नाम सहित (Seven Wonders of the World with Name) कुछ अनकहे, अनसुनी और रहस्यमई बातें।
Duniya ke Saat Ajoobe । दुनिया के सात अजूबे
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हमारे पृथ्वी पर कई ऐसी चीजें मौजूद हैं, जिनको देखकर हमें आश्चर्य होता है। ऐसी चीजों को हम दुनिया का अजूबा (Duniya Ke Saat Ajoobe) मानते हैं। इन चीजों को देखने के बाद हमें अपनी आंखों पर भी विश्वास नहीं होता है।
और मन में कई तरह के सवाल उत्पन्न होने लगते हैं। वैसे तो हमारा ग्रह पृथ्वी अजुबों से भरा हुआ है, परंतु हम मनुष्य उन अजूबों में से कुछ का ही पता लगा पाए हैं।
हम मनुष्यों द्वारा अभी तक पृथ्वी पर मौजूद सात अजूबों का ही पता लग पाया हैं। आज हम जानेंगे कि दुनिया के सात अजूबा कौन-कौन (Duniya Ke Saat Ajoobe Kaun Kaun Se Hai) से हैं ।
वैसे इन अजूबों को प्राचीन अजूबा और आधुनिक अजूबा दो भागों में बांटा गया है। प्राचीन अजूबा वह है, जो प्राचीन समय में उपस्थित थे। जिनका अस्तित्व आज आधुनिक समय में समाप्त हो चुका है।
जबकि आधुनिक अजूबा वे है, जिसका अस्तित्व आज के आधुनिक समय में है। इन अजूबों (Duniya ke Saat Ajooba) की वास्तुकला, निर्माण शैली अद्भुत, अद्वितीय और अविश्वसनीय है।
दुनिया के सात अजूबे की चयन प्रक्रिया (The Selection Process of Seven Wonders of the World)
दुनिया के सात अजूबों का चयन एक सर्वे द्वारा किया गया था। इस सर्वे में दुनिया के लगभग 100 मिलियन लोगों ने भाग लिया था।सर्वप्रथम 1999 ई० में इन अजूबों के बारे में बात की गई थी।
इसके लिए सबसे पहले स्विट्जरलैंड के ज्यूरिक में न्यू 7 वंडर फाउंडेशन का गठन किया गया। इस फाउंडेशन ने कैनेडा में इंटरनेट पर एक साइट बनाई।
जिसमें दुनिया भर के 200 अद्भूत धरोहरों को शामिल किया गया था। इस चयन प्रक्रिया में लोग इंटरनेट से या फोन से वोट कर सकते थे। इतना ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को सिर्फ एक बार ही अपना सात अजूबा चुनने का मौका था।
यह वोटिंग प्रक्रिया लंबे समय तक चली।अंत में 7 जुलाई 2007 को इस फाउंडेशन ने अपना रिजल्ट घोषित किया। जिसमें दुनिया के सात अजूबा (Duniya Ke Saat Ajoobe) शामिल था। जिसे दुनिया भर के लोगों ने अद्भुत माना था।
दुनिया के सात अजूबा की सूची । 7 Wonders of the World List
- चीन का दीवार
- ताजमहल
- पेट्रा
- कोलोसियम
- माचू पिच्चू
- क्राइस्ट द रिडीमर
- चिचेन इत्जा
अब हम दुनिया के सात अजूबा को फोटो सहित (7 Wonders of the World with Images) विस्तारपूर्वक जानेंगे। यह अजूबा आधुनिक विश्व का अद्भूत धरोहर है।
यह अजूबा पिछले 100 वर्षों से अस्तित्व में है। यह आधुनिक विश्व का सात नए अजूबा (7 Wonders of the World New) है। तो चलिए, अब जानते हैं इन अजूबों के बारे में विस्तार से –
01. चीन का दीवार (Great Wall Of China)
यह अद्भुत धरोहर चीन में अवस्थित है। यह बहुत विशाल है। यही कारण है कि, इसे “Great Wall of China” कहा जाता है। इसका निर्माण पत्थर, मिट्टी, ईंट, लकड़ी और कई अन्य पदार्थों को मिलाकर हुआ है।
यह इतना विशाल है कि, इसे अंतरिक्ष से भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यह विशाल दीवार पूर्व में दंदोग से लेकर पश्चिम में लोप लेक तक फैला हुआ है।
कुल मिलाकर इस दीवार की लम्बाई (China Wall Length) लगभग 21196.18 किलोमीटर और ऊंचाई (China Wall Height) 35 फीट है।
इतना ही नहीं बल्कि इसकी चौड़ाई इतनी है कि, इसमें आसानी से 10-15 लोग चल सकते हैं। चीन का दीवार छोटी-बड़ी दीवारों के समूह से बना है।
जिसे अलग-अलग राजाओं के द्वारा बनवाया गया था। चीन के ‘ट्रैवल चाइना गाइड’ के अनुसार इस महान दीवार के निर्माण में लगभग 20 राज्यों और उसके राजवंशों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया था।
इसका निर्माण काल 7वीं शताब्दी से 16वीं शताब्दी तक माना जाता है। इस दीवार के निर्माण के पीछे मुख्य उद्देश्य आक्रमणकारियों से सुरक्षा और सीमा नियंत्रण है।
चीन के दीवार के बारे (About China Great Wall) में कहा जाता है कि, चीन के इस दीवार के निर्माण के दौरान लगभग 10 लाख लोगों ने अपना जान गवाया था।
इसी कारण इसे ‘पृथ्वी पर सबसे लंबा कब्रिस्तान’ भी कहा जाता है। चीन के दीवार के निर्माण में सर्वाधिक योगदान मिंग राजवंश का है, वास्तव में चीन के दीवार का इतिहास (China Wall History) काफी रहस्यमई है।
क्योंकि उन्होंने 1368 से 1644 ई० के बीच लगभग 5500 मील की दीवार का निर्माण करवाया था। वास्तव में, यह दीवार अद्भुत है।
02. ताजमहल (Tajmahal)
ताजमहल को भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का शान माना जाता है। इसकी अद्भुत बनावट, वास्तु कला और रंग-रूप इत्यादि के कारण ही इसे दुनिया के सात अजूबे (Duniya Ke Saat Ajoobe) में शामिल किया गया है।
ताजमहल एक मकबरा है। इसे मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में सन 1632 ई० में बनवाया था। यह महल प्रेम का प्रतीक है।
इस प्रेम के प्रतिक को देखने के लिए लोग दुनिया भर से भारत आते हैं। यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में आगरा शहर में अवस्थित है। ताजमहल का निर्माण सफेद संगमरमर से हुआ है।
इसके चारों और बगीचा और आगे एक पानी का तालाब है, जो इसकी सुंदरता में चार चांद लगाता है। वैसे ताजमहल का अर्थ- ‘क्राउन पैलेस’ होता है।
ताजमहल को यूनेस्को द्वारा सन् 1983 ई० में विश्व धरोहर घोषित किया गया था। ताजमहल का निर्माण कार्य 1632 ई० में शुरू होकर 1648 ई० तक चलता रहा।
इतना ही नहीं बल्कि ताजमहल परिसर का कार्य 5 साल बाद 1653 ई० में समाप्त हुआ। ताजमहल की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि यह सुबह में गुलाबी, शाम में दूधिया सफेद और रात की चांदनी में सुनहरा चमकता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि, ताजमहल की वास्तु शैली इस्लामी, भारतीय, फारसी और तुर्क वास्तु शैली का अद्भुत सम्मिश्रण है। ताजमहल में मुमताज और शाहजहां का कब्र स्थित है।
ऐसी अवधारणा है कि, ताजमहल के निर्माण में करीब 22000 कारीगर लगे थे और जब ताजमहल का निर्माण कार्य पूरा हो गया तो शाहजहां ने उन कारीगरों के हाथ कटवा दिए थे।
क्योंकि वह ताजमहल को अद्वितीय बनाना चाहते थे। ताजमहल में लगे संगमरमर को राजस्थान के “मकराना” से मंगाया जाता था। इसकी अद्वितीय सुंदरता ही इसे विश्व के अजूबा (Duniya ke Saat Ajooba) में शामिल करता है।
03. पेट्रा (Petra)
पेट्रा को उसकी अद्भुत कलाकृति के लिए विश्व के सात अजूबों में शामिल किया गया है। यह “दक्षिणी जॉर्डन” में स्थित एक पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक शहर है।
पेट्रा को चट्टानों को काटकर बसाया गया था। इतना ही नहीं बल्कि ये पत्थर लाल रंग की है, इसी कारण पेट्रा को “Rose City” भी कहा जाता है।
यूनेस्को द्वारा पेट्रा को 1985 ई० में विश्व विरासत का दर्जा प्रदान किया गया था। पेट्रा लगभग 5 शताब्दियों के लिए बाहरी दुनिया से छिपा हुआ रहा, इसीलिए तो इसे ‘Lost City’ भी कहा जाता है।
परंतु 1812 ई० में स्विस खोजकर्ता ‘जोहान लुडविग बर्कहार्ट’ इसे पुनः दुनिया के सामने लाया। ऐसा माना जाता है कि, इस शहर को 900 ई० पू० में बसाया गया था।
यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। इतना ही नहीं बल्कि पहली शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास यहाँ 20 से 30 हजार के करीब घर थे। पेट्रा में लगभग 800 व्यक्तिगत स्मारके है।
जिसमें स्नानागार, मकबरे, इमारतें, मंदिर, हॉल, मेहराबदार, प्रवेश द्वार और कॉलोनडेड गलियां है। इन सब को केलीडोस्कोपिक बलुआ पत्थर पर उकेरी गई है।
पेट्रा को छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में नवातियों ने अपनी राजधानी के तौर पर स्थापित किया था। आधुनिक समय में पेट्रा एक मशहूर पर्यटन स्थल है।
पेट्रा एक “होड़” नामक पहाड़ी की ढलान पर बसा हुआ है। जो चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा एक द्रोणी में स्थित है। यह पहाड़ी मृत सागर से अकावा की खाड़ी तक फैली हुई वादी अरवा नामक घाटी की पूर्वी सीमा है।
पेट्रा में प्रवेश एक सीक के माध्यम से होता है, जो लगभग 1 किलोमीटर लंबा है और दोनों ओर से 80 मीटर ऊंची चट्टान के बीच से गुजरता है। वास्तव में पेट्रा एक अजूबा है।
04. कोलोसियम (Colosseum)
इटली का कोलोसियम भी विश्व के सात अजूबों (Colosseum 7 Wonders of the World) में अपना स्थान रखता है। वस्तुतः यह एक विशाल स्टेडियम है, जो इटली के रोम (Colosseum in Rome) में अवस्थित है।
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि, इसमें लगभग 50 से 80 हजार दर्शक बैठ सकते हैं। इसका निर्माण काल 72 ईसा पूर्व में सम्राट वेस्पासियन के शासन काल में प्रारंभ हुआ।
और उसके उत्तराधिकारी टाइटस के शासनकाल में 80 ईसा पूर्व में बनकर तैयार हुआ। यह 24000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका उपयोग विभिन्न खेलकूद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए किया जाता था।
जैसे- जानवरों की लड़ाई (मगरमच्छ, ऑरोज, स्टैग और शुतुरमुर्ग),नाटक, मॉक समुद्री लड़ाई इत्यादि। कोलोसियम को ट्रेवर्टीन पत्थर और तूफा से बनाया गया है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि, कोलोसियम को सीमेंट और बजरी के मिक्चर अर्थात मोर्टार के बिना बनाया गया है। कोलोसियम की सबसे खास बात तो यह है कि,
इसमें समाज के विभिन्न वर्गों की बैठने की व्यवस्था अलग-अलग थी। वर्तमान समय मे प्राकृतिक आपदाओं जैसे- भूकंप, बिजली इत्यादि के कारण कोलोसियम आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुका है।
कोलोसियम के बारे में ऐसी मान्यता है कि, जब संसार में किसी को मौत का सजा दिया जाता है तो इसका रंग बदलता है। कोलोसियम को रोमन स्थापत्य और अभियांत्रिकी का सर्वोत्कृष्ट नमूना माना जाता है।
05. माचू पिच्चु (Machu Picchu)
माचू पिच्चु दक्षिण अमेरिका के पेरू (Machu Picchu in Peru) के “पूर्वी कॉर्डिलेरा” में अवस्थित है। यह समुद्र से 2430 मीटर ऊंची चोटी पर स्थित एक शहर था।
इस शहर को “राजा पचाकुती” ने लगभग 1400 ई० के आसपास बसाया था। इतना ही नहीं बल्कि 15 वी शताब्दी में यहां इंका सभ्यता रहती थी।
लगभग 100 वर्षों बाद इस शहर पर स्पेन ने विजय प्राप्त कर इसे छोड़ दिया। इसके बाद देखरेख के अभाव के कारण यहां की सभ्यता नष्ट हो गई।
इसके साथ ही यह बाहरी दुनिया से गुम हो गई। परंतु पुनः 1911 ई० में अमेरिकी इतिहासकार “हीरम बिंघम” ने इसे दुनिया के सामने लाया।
1983 ई० में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया। हम आज भी यहां इंका सभ्यता के कलाकृतियों को देख सकते हैं। वैसे माचू का मतलब ‘पुराना’ तथा पिच्चू का मतलब ‘कोका का चबाया हुआ भाग या ‘पिरामिड’ होता है।
इसको देखने के बाद मन में सबसे पहला सवाल यही उत्पन्न होता है कि, इतनी ऊंचाई पर यहां के लोग कैसे जीवन-यापन करते थे? पर्यटकों को माचू पिच्चू तक पहुंचने में लगभग 3 से 5 दिन का समय लगता है।
माचू पिच्चू में बहुत अधिक वर्षा होती थी। इसी कारण यहां की जल निकास प्रणाली की व्यवस्था उत्तम थी। यहां के लोग घरों के छत पर खेती करते थे।
माचू पिच्चू में समय की गणना यहां स्थित ‘इंतिहुअताना’ नामक पत्थर से की जाती थी। पेरू अत्यंत ही भूकंप संवेदनशील क्षेत्र है। लेकिन माचू पिच्चू की इमारते यहां के इंजीनियरिंग का एक बेहतरीन नमूना है।
यहां के इमारतों के पत्थर को इस प्रकार काटा गया था कि भूकंप आने पर यह पत्थर उछल कर पुनः अपने स्थान पर सेट हो जाया करता था। वर्तमान समय में माचू पिच्चू से संबंधित कई वीडियो गेम बनाए गए हैं।
इसकी ऊंचाई ही इसे विश्व के सात अजूबों (Duniya ke Saat Ajooba) में शामिल करता है। माचू पिच्चू के ऊंचाई, बाढ़ और लंबी यात्रा के कारण पर्यटकों की मृत्यु हो जाती है।
इन सब कारणों के वजह से ही माचू पिच्चू को यूनेस्को द्वारा डेंजर विश्व धरोहर घोषित किए जाने पर विचार हो रहा है।
06. क्राइस्ट द रिडीमर (Christ The Redeemer)
क्राइस्ट द रिडीमर भगवान यीशु मसीह का प्रतिमा है, जो 130 मीटर ऊंचा और 28 मीटर चौड़ा है। यह विशाल प्रतिमा ब्राजील के (Christ the Redeemer of Brazil) रियो डी जनेरियो में “माउंट कार्कोवाडो” में स्थित है।
वैसे रिडीमर “यीशु मसीह” को कहा जाता है। जिसका अर्थ- उद्घारक होता है। क्राइस्ट द रिडीमर को ईसाई धर्म के प्रतीक के रूप में बनाया गया था।
ईसाई धर्म के प्रवर्तक यीशु मसीह के इस मूर्ति का निर्माण कार्य 1922 में शुरू हुआ और 12 अक्टूबर 1931 को यह मूर्ति बनकर तैयार हुआ।
इस मूर्ति को कंक्रीट और पत्थर से बनाया गया है। क्राइस्ट द रिडीमर को ब्राजील के सिल्वा कोस्टा ने डिजाइन किया था और फ्रेंच के महान मूर्तिकार पॉल लेंडोस्की ने इसे बनाकर तैयार किया।
इस प्रतिमा का वजन 635 टन है। यह प्रतिमा दुनिया भर के ईसाई धर्म का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। 10 फरवरी 2008 को मूर्ति पर बिजली गिरने के कारण इसके उंगली, सिर और भौंह नुकसान पहुंचा था।
इतना ही नहीं पुनः 17 जनवरी 2014 को बिजली गिरने के कारण प्रतिमा के दाहिने हाथ की एक उंगली क्षतिग्रस्त हो गया था। जिसे बाद में रिपेयर किया गया।
Christ the Redeemer Statue विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा थी, जिसे हाल ही में भारत में बनी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की प्रतिमा ने पछाड़ दिया।
07. चिचेन इत्जा (Chichen Itza)
चिचेन इत्जा कोई इमारत या मकबरा नहीं बल्कि यह एक विशाल पूर्वी कोलंबियाई शहर था, जो लगभग 5 वर्ग किलोमीटर में फैला था और 73 फीट ऊंचा था।
जिसे माया सभ्यता के लोगों ने बसाया था। वैसे चिचेन का अर्थ- इत्जा के कुएँ के मुहाने पर या मुंह पर है। चिचेन में ची का मतलब ‘मुंह या मुहाना’ और चेन का मतलब ‘ कुआँ ‘ होता है।
चिचेन इत्जा मेक्सिको (Chichen Itza of Mexico) के “यूकाटन” राज्य के पूर्वी भाग में स्थित है। चिचेन इत्जा को 1988 ई० में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किया गया था।
यहां पर एक हजार स्तंभों का समूह मौजूद है। चिचेन इत्जा में स्थित कुकुलकैन के मंदिर यहां के मुख्य पर्यटन स्थल है। यह मंदिर पिरामिड की आकृति का है।
इतना ही नहीं बल्कि इस मंदिर में एक सुरंग है, जिसमें एक और मंदिर स्थित है। इसका निर्माण लगभग 600 ई० में हुआ था। चिचेन इत्जा को माया सभ्यता का सबसे बड़ा शहर माना जाता है।
इसे पत्थर से बनाया गया है। इसके ऊपर जाने के लिए इसके चारों और सीढ़ियां बनी हुई है। इन सीढ़ियों की कुल संख्या 365 है और हर दिशा में 91 सीढ़ियाँ दिया है।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि, यहां की प्रत्येक सीढ़ियाँ को एक दिन का प्रतीक माना जाता है। इतना ही नहीं बल्कि सबसे ऊपर 365वाँ सीढ़ी पर एक चबूतरा बना हुआ है।
इन सबके अलावा यहां चक मूल का मंदिर, पिरामिड ऑफ़ कुकुल्कन, हजार स्तंभों के हॉल और कैदियों के खेल मैदान हैं। ‘द ग्रेट नॉर्थ प्लेटफार्म’ चिचेन इत्जा का सर्वाधिक देखी जाने वाली जगहों में से एक है।
चिचेन इत्जा में स्थित कई जगह की खासियत उसकी आवाज दोहराने की कला है। जैसे- यदि कोई बॉल कोर्ट के एक छोर पर एक बार ताली बजाता है तो यह कोर्ट में 9 बार गूंजता है।
चिचेन इत्जा के सर्वेक्षण के दौरान पुरातत्वविदों को यहां मेसो अमेरिकन बॉल गेम खेलने के लिए 13 बॉलकोर्टस के अवशेष मिले हैं।वास्तव में चिचेन इत्जा एक अजूबा है।
प्राचीन युग के सात अजूबे (The Ancient Seven Wonders of the World)
- गीजा का पिरामिड
- अर्टेमिस का मंदिर
- माउसोलस का मकबरा
- बेबीलोन के झूलते बाग
- रोडेस की विशाल मूर्ति
- ओलम्पिया के जियस की मूर्ति
- अलेक्जेंड्रिया का रोशनी घर
उपयुक्त सभी प्राचीन विश्व के सात अजूबे (Duniya ke Saat Ajooba) थे। जिसकी कलाकृतियाँ अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय है। वर्तमान समय में सिर्फ गीजा का पिरामिड ही बचा हुआ है।
बाकी सभी प्राचीन धरोहर नष्ट हो चुके हैं। संभवत: प्राचीन समय में इनका बहुत ही ज्यादा महत्व था। वास्तव में इसको देखने पर यह अजूबा ही प्रतीत होता है।
हम इसमें प्राचीन युग के अजूबों में बचा गीजा के पिरामिड के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करेंगे।
The Great Pyramid of Giza। गीजा का पिरामिड
गीजा का पिरामिड का प्राचीन युग के सात अजूबा (The Great Pyramid of Giza 7 Wonders the World) में से एक है। गीजा का पिरामिड विश्व का सबसे बड़ा और सबसे पुराना पिरामिड है।
यह प्राचीन समय से लेकर आज तक इस संसार में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। गीजा का पिरामिड “मिस्र” में स्थित है। गीजा के पिरामिड की कलाकृतियां प्राचीन सर्वोत्तम कलाकृतियों में से एक है।
इसका निर्माण 2580 से 2560 बी सी में हुआ था। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि, गीजा के पिरामिड को बनाने के पीछे कई वैज्ञानिकों का अलग-अलग तर्क है।
वैज्ञानिकों द्वारा सबसे व्यापक तौर पर इस तर्क को स्वीकार किया गया है कि इसे राजा “khufu” और उसकी रानी के मकबरे पर बनाया गया है।
गीजा का पिरामिड 2383283 क्यूबिक मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इतना ही नहीं बल्कि यह 146.5 मीटर ऊंचा है। यह 3800 सालों तक मानव निर्मित सबसे लंबी कलाकृति रही है।
आधुनिक समय में गीजा के पिरामिड को एक विशेष स्थान प्राप्त है। गीजा के पिरामिड का निर्माण “चूना पत्थर” और “ग्रेनाइट पत्थर” से हुआ है। यह वास्तव में प्राचीन युग का अद्भुत निर्माण है।
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