Essay on Diwali in Hindi 2022 । दीपावली पर निबंध

Essay on Diwali in Hindi (दीपावली पर निबंध) : दोस्तों यह बात तो हम सभी भारतवासी भली-भांति जानते हैं, कि हमारी भारतीय परंपरा में पर्वों का एक अलग ही महत्व रहा है।

जिसे प्राचीन काल से हमारे पूर्वजों और वर्तमान परिवेश में हम सब के द्वारा मनाया जाता है और शायद यही कारण है, कि आज के दौर में भी संपूर्ण विश्व द्वारा भारत को एक अलग नजरिया से देखा जाता है। भारत में मनाए जाने वाले प्रमुख पर्वों में से एक है – दीपावली जिसके बारे में आज हम आपको विस्तृत जानकारी देने वाले हैं।

Essay on Diwali in Hindi । दीपावली पर निबंध

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अन्य कई पर्वों के तरह ही दीपावली भी हमारे भारतवर्ष के इस पवित्र भूमि पर हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहार है। दीपावली का त्यौहार विशेषकर वैश्य-वर्ग का माना जाता है। यह वैश्यो का त्योहार विशेष रूप से इसलिए माना जाता है, कि वैश्य-वर्ग का कार्य था – कृषि और व्यवसाय। कृषि कार्य इस समय समाप्त-सा माना जाता है।

क्योंकि खरीफ, भदई का काम पूरा हो चुका होता है। रबी की बुआई समाप्त हो चुकी होती है। व्यवसायियों को नए माल के लिए बाहर जाना पड़ता है तथा कृषकों से उनके माल की ढुलाई में सहायता मिलती है। क्योंकि वे खाली रहते हैं। कतिपय किसान कुछ थोड़ा-बहुत व्यवसाय भी करते हैं।

इस त्यौहार को मनाकर कर सभी अपने अपने कार्यों में लग जाते हैं। परंतु अगर हम आज के परिवेश का बात करें तो भारत के लगभग सभी जातियों, धर्मों और संप्रदायों के लोग भारत वर्ष के इस महान पर में दिल खोल कर भाग लेते हैं।

दीपावली का पर्व कब मनाया जाता है? – When Diwali Festival is Celebrated?

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दोस्तों आज के दौर में तो भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी इस पर्व को कई रूप में मनाया जाता है। परंतु अभी हम हमारे भारतवर्ष में इस पर्व को कब मनाया जाता है। सिर्फ इस मुद्दे पर बात करने वाले हैं।

तो चलिए चलते हैं हम अपनी मुद्दे की ओर – दोस्तों दीपावली (Essay on Diwali in Hindi) का यह महापर्व वर्षा और शरद ऋतु के संधिकाल का मंगलमय पर्व माना जाता है।

यह पर्व कार्तिक माह के पंद्रहवें दिन अर्थात अमावस्या के दिन मनाया जाता है। ज्वार, बाजरा, मक्का, धान, कपास आदि इसी ऋतु की देन है। इन फसलों को खरीफ की फसल कहते हैं। शरद ऋतु के आरंभ होने के कारण मौसम अत्यंत सुहावना होता है। वातावरण में चारों ओर उल्लास और आनंद दिखाई देता है।

दीपावली मनाए जाने के पीछे की पौराणिक कथाएं। The Mythological Stories Behind Celebrating Diwali in Hindi

यह बात तो हम सभी भारतवर्ष के लोग पहले से ही अच्छी तरह जानते हैं, कि हमारे भारतवर्ष के इस तपोभूमि पर ऐसा कोई भी पर्व नहीं है। जिनके मनाए जाने के पीछे कोई धार्मिक कथा हो ही नहीं। हमारे इस देश के पवित्र भूमि पर जो भी छोटे से छोटे और बड़े से बड़े पर मनाए जाते हैं। उनके मनाए जाने के पीछे कोई न कोई धार्मिक कथा अवश्य ही जुड़ी होती है।

अतः निश्चित रूप से हम कह सकते हैं कि दीपावली (Essay on Diwali in Hindi) के मनाए जाने के पीछे भी अनेक पौराणिक कथाएं हमारे समाज में प्रचलित – एक कथा के अनुसार कहा जाता है, कि जब महाराजा श्री रामचंद्र जी 14 वर्ष का बनवास जीवन बीता कर लंकापति रावण का वध करके अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वापस अपने नगर अयोध्या में पदार्पण किए और अयोध्या के सिंहासन पर आरूढ़ हुए तो उनके आगमन और विजय के उपलक्ष्य में उस समय अयोध्या वासियों ने संपूर्ण अयोध्या नगरी को दीपमालाओं से प्रकाशित करके अपने प्रसन्नता को व्यक्त किया।

उसी स्मृति में तब से लेकर आज तक इस पर्व को दीपावली के रूप में मनाया जाता है। दूसरी कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण द्वारा जब नकासुर का वध किया गया तथा नारी उद्धार किए तो लोग इस स्मृति में ही इस पर्व को मनाते हैं।

तीसरी कथा के अनुसार माना जाता है, कि वामन का रूप धारण कर जब भगवान विष्णु ने दैत्यराज बलि की दानशीलता की परीक्षा लेकर उनके अहंकार को मिटाया था। तभी से ही भगवान विष्णु की स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है।

चौथी कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है, कि इस दिन भगवान ने राजा बलि को पाताल लोक का इंद्र बनाया था। तब इन्द्र ने बड़ी प्रसन्नता पूर्वक दीप जलाकर अपनी खुशी को प्रकट किया कि मेरा स्वर्ग का सिंहासन बच गया। तब से लेकर आज तक इसी याद में इस पर्व को दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

पांचवी कथा के अनुसार कहा जाता है, कि इसी दिन समुंद्र मंथन के समय क्षीरसागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थी और भगवान को अपना पत्नी स्वीकार की थी।

छठी कथा के अनुसार मान्यता है, कि इसी दिन राजा विक्रमादित्य ने अपने संवत् की रचना की थी। बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाकर मुहूर्त निकलवाया था, कि नया संवत चैत सुदी प्रतिपदा से चलाया जाए।

जैन धर्म के अनुआयी भी दीपावली को एक पवित्र उत्सव मानते हैं। उनके मतानुसार 24 वे तीर्थंकर भगवान महावीर ने इसी दिन पृथ्वी पर अपना अंतिम ज्योति फैलाई थी और वह मृत्यु को प्राप्त हो गए। यही कारण है, कि जैन संप्रदाय में इस तिथि का स्थान महत्वपूर्ण है। आर्य समाज भी इस तिथि का स्थान महत्वपूर्ण है।

क्योंकि इसी दिन आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती का मृत्यु हुआ था। सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह भी इसी दिन कारावास से मुक्त हुए थे। इस प्रकार इन महापुरुषों की स्मृति को अमर बनाने के लिए भी यह त्यौहार बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है।

भारत के विभिन्न जगहों पर दीपावली की तैयारी। Preparation of Diwali at Various Places in India

दोस्तों सबसे पहले तो हम भारतवर्ष के विभिन्न जगहों पर किस प्रकार इस महापर्व की तैयारी की जाती है इस मुद्दे पर बात करेंगे।

हमारे देश में दीपावली (Essay on Diwali in Hindi) आने के कुछ समय पहले से ही हमारे देश के शहरों, नगरों, गांव के घरों एवं गली-मुहल्ले में साफ सफाई शुरू हो जाती है।

अतः सारा सामान अपने-अपने घर-आंगन, मकान- दलाल आदि की साफ-सफाई, पुताई-रंगाई शुरू कर देते हैं। छोटे-बड़े, गरीब-अमीर सभी तरह के लोग दीपावली के स्वागत की तैयारी में लग जाते हैं।

और इस बात को तो हम पहले से ही जानते हैं, कि दीपावली अमावस्या के दिन मनाया जाता है। लेकिन एक तरह से कहा जाए तो दीपावली का यह त्यौहार पांच दिनों तक चलता है।

पहला दिन गोवत्स द्वादशी आती है। यह त्यौहार कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वादशी को आता है। इस दिन गायों, बैलो, और बछड़ों की सेवा की जाती है। इस दिन प्रातःकाल स्नानादि करके गाय, बैल एवं बछड़े का पूजन किया जाता है।

फिर उनको गेहूं के बने पदार्थ खिलाए जाते हैं। इस दिन गाय आदि का दूध, गेहूं की बनी वस्तुएं, कटे फल आदि नहीं खाए जाते हैं। इसके बाद गोवत्स द्वादशी की कथा सुनकर ब्राह्मणों को फल दान दिया जाता है।

दूसरे दिन धनतेरस अथवा धन्वंतरि जयंती आती है। यह त्योहार दीपावली (Essay on Diwali in Hindi) आने की पूर्व सूचना देता है। यह कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है।

इस दिन घर मे लक्ष्मी का आवास मानते है। इस दिन ही धन्वन्तरी वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरी जयंती भी कहते हैं। इस दिन कोई भी वस्तु खरीदना शुभ माना जाता है।

तीसरे दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी) अथवा छोटी दीपावली का उत्सव मनाया जाता है। श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध के कारण यह दिवस नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। यह कार्तिक वदी चौदस के दिन ही मनाई जाती है।

इस दिन लोग सुबह उठकर आटा, तेल, हल्दी, से उबटन करते हैं। फिर स्नान करते हैं। भोजन करने से पहले एक थाली में चौमुख दीपक और छोटे दीपक रख लेते हैं।

उनमें तेल और बत्ती डालकर जलाते हैं फिर रोली, खील, गुड़, अबीर, गुलाल, फूल आदि से पूजा करते हैं। शाम को पहले उद्योगों की गद्दी की पूजा करते हैं। फिर घर पर पूजा करते हैं। पूजन के पश्चात सब दीपक को घर के अलग-अलग प्रत्येक स्थान पर रख देते हैं।

चौथे दिन अमावस्या होती है। जो दीपावली (Essay on Diwali in Hindi) उत्सव का प्रधान दिन होता है। लोग दिन से ही अपने घरों की सजावट आदि करने में अस्त-व्यस्त रहते हैं। रात्रि के समय में सभी नए नए वस्त्र धारण करते हैं और अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी देवी और रिद्धि-सिद्धि के स्वामी गणेश जी की श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं।

तथा पूजा-अर्चना के बाद लोग अपने घर को दीपमालाओ से सजाते हैं। सजाने के सामग्री में छोटे-छोटे मिट्टी के दीप, मोमबत्ती, कागज के कैंडल आदि होते हैं। मकान के छतो-छज्जो और मुंडेर पर दीपों की माला सजाई जाती है। दीपक की पंक्तियां एक आकर्षक दृश्य उपस्थित करती है। बच्चे के साथ-साथ बड़े भी पटाखे और रंग-बिरंगी फुलझड़ियां छोड़ते हैं।

हर जगह रोशनी ही रोशनी दिखाई देती है। रोशनी की जगमगाहट से सबके चेहरे पर खुशी की लहर छा जाती है। सारा वातावरण धूम-धड़ाके से गुंजायमान हो जाता है।

इस प्रकार अमावस्या की रात रोशनी की रात में बदल जाती है। लोग घर से बाहर निकलते हैं और अपने आस-पड़ोस के घर जाकर अपने से बड़ों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं और एक दूसरे को मिठाइयां पूरी- पकवान आदि खिलाते हैं। मिठाइयां खाते-खिलाते रात के कुछ घंटे बीत जाते हैं।

ऐसी मान्यता है, कि इस रात लक्ष्मी घर में प्रवेश करती है। इस कारण लोग रात को अपने घर के दरवाजे खुले रखते हैं। इस दिन दीपोत्सव के द्वारा सभी लोग सुख समृद्धि और आनंदमय जीवन की कामना करते हैं। जिससे कि अभावों का अंधेरा मिट जाए और माता लक्ष्मी घर में चले आवे।

रिद्धि-सिद्धि के स्वामी गणेश जी सभी प्रकार के विघ्न बाधाओं को दूर करें। कोई हजारो रंग-बिरंगी बत्तियां के जगमगाते आलोक से धन और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की राह को आलोकित करता है, तो कोई मिट्टी के टिमटिमाते दिए से।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारतवर्ष के महापर्व में दीपावली (Essay on Diwali in Hindi) नामक यह त्योहार जनसाधारण की जीवन यात्रा में एक सुख पुराव है।

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है। यह पूजा श्रीकृष्ण के गोवर्धन धारण करने की स्मृति में मनाई जाती है। स्त्रियां गोबर से गोवर्धन की प्रतिमा बनाती है। रात्रि को उनकी पूजा होती है। किसान अपने-अपने अपने बैलों को नहलाते हैं और उनके शरीर पर मेहंदी एवं रंग लगाते हैं। इस दिन अन्नकूट भी मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा के अगले दिन भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनके लिए मंगल कामना करती है। कहा जाता है, कि इस दिन यमुना ने अपने भाई युवराज के लिए कामना की थी। तभी से यह पूजा चली आ रही है।

इसीलिए इस पर्व को “यम द्वितीया” भी कहते हैं और इसे दीपावली की आखिरी दिन के रूप में मनाया जाता है।

विदेशों में दीपावली का त्योहार। Diwali Festival in Foreign

दोस्तो आज के वर्तमान परिवेश में हमारे द्वारा शायद ऐसा कहना निश्चित तौर पर गलत साबित हो सकता है, कि विश्व का ऐसा कोई देश हो जहां भारतीय नहीं है। अत: हम कह सकते हैं, कि विश्व के कोने-कोने में भारतीय का निवास है। तथा हमारे भारतीय संस्कृति और परंपरा में ऐसी शक्ति है, कि भारतीय परिवेश में पले बढ़े अक्सर आदमी विश्व के किसी भी कोने में क्यों न चली जाए।

वह अपनी परंपरा कायम रखते हैं और यही कारण है, कि अन्य देशों में भी भारतीय मूल के आदमी इस पर्व को काफी अच्छे से मनाते हैं। जिनमें कुछ देशों के बारे में नीचे हमने आपको जानकारी देने की कोशिश करी है।

मलेशिया (Malaysia)

भारतीय परंपरा की इस महापर्व दीपावली के अवसर पर भारत के तरह ही मलेशिया के स्कूल, कॉलेजों और ऑफिसों में छुट्टी की घोषणा की जाती है। यहां सभी संप्रदायों, धर्मों के लोगों द्वारा मिलकर इस त्यौहार को काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इस महापर्व के अवसर पर वहां भी खाने-खिलाने और मिलने-जुलने की परंपरा का लोग पूरे दिन आनंद लेते हैं। दीपावली के इस महापर्व को मलेशिया में सामाजिक सद्भावना के रूप में मनाया जाता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका (United States)

अमेरिका में भारतीय मूल के काफी लोग बसे हुए हैं। ऐसा कहा जाता है कि वर्तमान समय में चार लाख से अधिक भारतीय अमेरिका में बसते हैं। यही कारण है कि दीपावली के इस पर्व को वहां भी काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है।

सन् 2003 में अमेरिका के व्हाइट हाउस में पहली बार दीपावली का यह त्यौहार मनाया गया था। उसके बाद से लेकर लगभग पूरे अमेरिका में इस त्यौहार को अपना लिया।

नेपाल (Nepal)

यह बात तो हम सभी जानते ही हैं, किभारत का सबसे निकटवर्ती देश नेपाल है। जो छोटा सा है। यहां पर भारतीय संस्कृति के अधिकतर लोग रहते हैं।

यही कारण है, कि यहां भी दीपावली मनाया जाता है। नेपाल में दीपावली को “तिहार” या “स्वन्ति” के रूप में मनाया जाता है। इस प्रकार और भी देश है जहां भारतीय संस्कृति के इस महापर्व को काफी धूमधाम से मनाया जाता है।

दिवाली का महत्व । Importance of Diwali in Hindi

दरअसल दीपावली का पर्व कई रूपों में उपयोगी है। इसी बहाने टूटे-फूटे घरों, दुकानों, फैक्ट्रियों आदि की सफाई-पुताई हो जाती है। वर्षा ऋतु में जितने कीट-पतंगे उत्पन्न होते हैं। सब के सब मिट्टी के दिए पर मंडरा कर नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार सारी गंदगी दूर हो जाती है पर्यावरण शुद्ध हो जाता है।

दिवाली के हानिकारक पहलू। Harmful Aspects of Diwali in Hindi

वैसे तो हमारे भारतीय समाज में ऐसा किसी भी तरह का पर्व मनाए जाने की परंपरा नहीं है। जो हमे हानि पहुंचाए परंतु आज के दौर में हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग उत्पन्न हो गए हैं। जो इस महापर्व के अवसर पर भी कुछ ऐसे काम कर डालते हैं। जिससे हमें कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जो निम्नलिखित है : –

दीपावली के इस महापर्व के दिन लोग पटाखे और आतिशबाजी जलाते हैं। जिससे हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। इसलिए यह नहीं करना चाहिए। बहुत से बच्चे पटाखे जलाते समय कुछ गलतियों के कारण घायल हो जाते हैं। जिससे इस खुशी के माहौल में गम छा जाती है। कुछ लोग आज के दिन जुआ आदि खेलकर अपना धन बर्बाद कर देते हैं।

उपसंहार (Conclusion)

उपयुक्त बातों को ध्यान में रखते हुए अंततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, कि दीपावली के इस महापर्व का आवाहन् है –

“आइये मिट्टी के दीए जलाएं, घर आंगन जगमगाए।
प्रकाश का पर्व मनाऍ और अंधकार को दूर भगाएं।
इस तिमिर से संत्रस्त नहीं होना है, हिम्मत परास्त नहीं होना है।
यह रात भर का मेहमान है, किंतु हम दिए जलाकर,
इसके अस्तित्व को नकारते चले, इस शैतान को को मारते चले।
पौ फटते ही प्रकाश फैलेगा, क्षितिज पर सूरज निकलेगा और
अंधकार भाग चलेगा।”

यह गंदगी के विरुद्ध स्वच्छता का भी अभियान है। या फिर हम यह भी कह सकते हैं, कि यह गंदगी के खिलाफ एक जंग है। रोशनी की बंदगी है। यह आलोक की आराधना है। संघर्ष की साधना है। अंधकार के अहम की प्रार्थना है। यह तिमिर की विस्मृति है। मानव की विजय-हूंकृति है। अंधकार के अस्तित्व की अस्वीकृति है।

इतना ही नहीं बल्कि यह हमें भाईचारे, सहयोग, सुख और शांति का संदेश देती है। अतः हमें भी यह संकल्प लेते हुए कहना चाहिए कि, “आइये अंधकार को भगाता चले, प्रकाश का विजय गीत गाते चले, दिए जलाते चले, घर-आंगन जगमगाते चले और धरती के आंचल को दीपों से सजाते चले।”

Diwali Related Some FAQs

  1. दीपावली कब मनाया जाता है?

    दीपावली कार्तिक माह के अमावस्या को मनाया जाता है।

  2. दीपावली में किस भगवान की पूजा की जाती है?

    दीपावली में लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है।

  3. दीपावली का पर्व कितने दिनों तक मनाया जाता है?

    5 दिनों तक दीपावली का पर्व मनाया जाता है।

  4. धनतेरस दीपावली के किस दिन को मनाया जाता है?

    दीपावली का पहला दिन धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।

  5. नेपाल में दीपावली को किस नाम से जाना जाता है?

    नेपाल में दीपावली को तिहार के नाम से जाना जाता है।

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