Jump To
Essay on Dussehra in Hindi । दशहरा पर निबंध : Friends, आज मैं आप सभी के लिए एक बहुत ही खास Topic लेकर आयी हूँ जो हैं – दशहरा पर निबंध (Dussehra Par Nibandh)।
यह एक ऐसा त्योहार हैं, जिसे हम लोग कई नामो से जानते हैं यथा : Vijiya Dashmi, Dussehra, Durga Puja, आदि नामो से भी जानते हैं।
खासतौर पर यह हिन्दुओ द्वारा मनाये जाने वाला प्रमुख त्योहारों में एक हैं। आज दशहरा या फिर कहे तो दुर्गा पूजा (Durga Puja in Hindi) नामक इस Artical के माध्यम से हम सभी इस त्योहार के बारे में कई बातों को जानने का प्रयास करेंगे।
तो चलिए चलते हैं, अपनी मुद्दों की ओर और जानते हैं। दशहरा नामक इस त्योहार के बारे (About Dussehra in Hindi) में कुछ महत्वपूर्ण बाते –
दशहरा पर निबंध । Essay on Dussehra in Hindi
एक बात तो हम सभी भारतवासी (Indians) भली-भांति जानते हैं, कि भारत रंगीन त्योहारों का देश है। हम अत्यंत उत्साह के साथ अपने त्योहारों को मनाते हैं।
कहा जाए तो यह एक ऐसा देश है, जहां एक भी माह ऐसा नहीं होता जिसमें में कोई पर्व नहीं हो। भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्येक माह में कोई ना कोई पर्व होता ही रहता है।
जो एक धार्मिक कथा से अवश्य ही जुड़ी होती है। परंतु अगर हम भारत में मनाए जाने वाले मुख्य पर्वो की बात करें तो, उनमें दीपावली, होली, वैशाखी आदि जैसे- कुछ भी गिने-चुने पर्व है।
जो संपूर्ण भारतवर्ष द्वारा काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। उन्ही पर्वों में से एक है- “दशहरा”। जिनके बारे में आज हम आपको विस्तृत जानकारी देने की कोशिश करेंगे।
दुर्गा पूजा संपूर्ण भारतवर्ष के हिंदुओं द्वारा मनाई जाने वाली प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह हिंदुओं का एक प्रसिद्ध त्योहार है।
दुर्गा पूजा को दशहरा, विजयादशमी और नवरात्रा पूजा आदि नामो से जाना जाता है। विजयादशमी का संबंध “शक्ति” से है। जिस प्रकार ज्ञान के लिए मां सरस्वती की उपासना की जाती है।उसी प्रकार ‘शक्ति’ और ‘साहस’ के लिए मां दुर्गा देवी की उपासना की जाती है। क्योंकि माता दुर्गा शक्ति और साहस की देवी मानी जाती है।
हमारे देश मे मां दुर्गा को विभिन्न नामो जैसे- चामुंडा, सिंहवाहिनी, चंडिका, भवानी, काली, कल्याणी, कामाक्षी आदि नामो से पुकारा जाता है।
मां दुर्गा शेर की सवारी करती हैं। पुराणो में ऐसा बताया गया है कि, मां दुर्गा का जन्म ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त शक्तियों से हुआ है।
इस महान पर्व के अवसर पर हमारे स्कूल, कॉलेज और कार्यालय आदि में एक लंबी अवधि की छुट्टी रहती है।
यह बात तो हम सभी भारतवासी जानते हैं, कि पूरे भारतवर्ष में जहां कहीं भी कोई भी पर्व मनाया जाता है। वह पर निश्चित तौर पर किसी ना किसी प्राचीन धार्मिक कथा से जुड़ी होती है।
उन्ही पर्वो में से एक है- दुर्गा पूजा (Durga Puja Par Nibandh) तो निश्चित तौर पर हम कह सकते हैं, कि दुर्गा पूजा मनाया जाने के पीछे भी कोई न कोई धार्मिक कथा जरुर होगी।
जिसके बारे में आज हमारी कोशिश है, कि आपको ज्यादा से ज्यादा जानकारी दे सकूं। तो आइए जानते हैं दुर्गा पूजा मनाया जाने के पीछे की धार्मिक कथाएं-
वैसे तो अनेक धार्मिक कथाएं विभिन्न तरह से बताई जाती है। जो वेद-पुराण, देवी-भागवत, उपनिषद् आदि में वर्णित है। लेकिन हमारे यहां जो कथाएं प्रचलित हैं।
उनमें कहा जाता है, कि महिषासुर नामक राक्षस ने अपने तप से तीनो देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश से अमरता और तीनो देव में किसी के हाथो नहीं मरने का वरदान पा लिया था।
वरदान पाने के बाद वह देवो को बंदी बनाने लगा और देवो के राजा इंद्र को परास्त कर स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया। इससे तीनों लोक में हाहाकार मच गया।
सभी देवी-देवताएँ अत्याचार से तंग आ गए। तब देवो ने तीनो देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश से इस समस्या का समाधान करने की प्रार्थना की।
तभी तीनो देवो ने विचार कर अपनी संयुक्त शक्ति से माता दुर्गा का निर्माण किए और माता दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध करके दसवे दिन महिषासुर का वध कर देवों को मुक्त कराई।
यही कारण है, कि मां दुर्गा को “महिषासुरमर्दिनि” कहते हैं। तब से लेकर आज तक इसी खुशी में दुर्गा पूजा का पर्व मनाया जाता है।
दुर्गा पूजा को लेकर एक और भी धारणा प्रचलित हैं, जिनमें ऐसा माना गया है, कि जब भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण दंशी अभिमानी, पापी, आतताई लेकिन शिवाशीष से अपारजय था।
उसका संहार कर पूरे 14 वर्ष का वनवास जीवन बिताकर वापस अयोध्या लौटे थे। इसी स्मृति में तब से लेकर आज तक इस पर्व को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।
चुंकि रावण का दश आनन था। इसलिए इस पर्व को विजयादशमी के नाम से भी मनाया जाता है।
ऐसी भी मान्यता है कि, माता दुर्गा ने दस पाप अनवधानता, असमर्थता, स्वार्थपरता, संकीर्णता, भीरूता, शिथिलता, दीनता, आत्मवंचकता, अकर्मण्यता, परमुखापेक्षित से मनुष्यों को मुक्ति दिलाई थी।
तब से ही इस पर्व को दशहरा के रूप में मनाया जाता है। भारतवर्ष में कहीं-कहीं आश्विन और चैत में दो बार दुर्गा पूजा की जाती है।
आश्विन की पूजा को शारदीय पूजा तथा चौथ की पूजा को “वासंती पूजा” कहते हैं। लेकिन वासंती पूजा अधिक प्रचलित नहीं है। दुर्गा पूजा को लेकर कई अवधारणाएं हैं।
और लोग इसे अलग अलग तरीके से भी मनाते हैं। उपयुक्त कथाओं का अध्ययन करते हुए अंततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि,
इस पूजा के आरंभ की कथा चाहे जो भी हो लेकिन इतना तो स्पष्ट है, कि इस दिन “सत्य की विजय” और असत्य की पराजय हुई थी। देवताओं की जीत और राक्षसों की हार हुई थी।
संपूर्ण भारतवर्ष के विभिन्न जगहो पर दुर्गा पूजा का आयोजन
या देवी सर्वभुतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमः तस्यै, नमः तस्यै, नमः तस्यै, नमो: नमः
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमःतस्यै, नमः तस्यै, नमः तस्यै, नमो: न।
कर्णप्रिय इस मंत्र का उच्चारण जब भारतवर्ष के सभी शहरो, गली-मुहल्लों और गांव के घरो और मंदिरो से सुनाई देने लगता है, तो पता चल जाता है, कि आश्विन माह (सितंबर-अक्टूबर) का शुक्ल प्रतिपदा प्रारंभ हो गया है और कलश स्थापना हो गया है।
प्रतिपदा के दिन संपूर्ण भारत वर्ष के लगभग सभी हिंदू परिवार में देवी भगवती की स्थापना की जाती है। कलश स्थापना के दिन से ही पूजा आरंभ होती है और कलश स्थापना के ठीक दसवे दिन इस पूजा का विसर्जन होता है।
इस दौड़ान दुर्गा सप्तमी पाठ और आठ दिनों तक नियम पूर्वक, पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ देवी मां के आठ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।
प्रथम दिन अर्थात कलश स्थापना के दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन स्कंदमाता, चौथे दिन कुष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी की पूजा की जाती है।
सप्तमी अष्टमी और नवमी को बड़ी धूमधाम से मां की पूजा-अर्चना की जाती है। नवमी के दिन हमारे यहां कुमारी कन्याओं को खिलाने की प्रथा है।
कलश स्थापना के प्रारंभ होने के लगभग दस दिन पहले से ही हमारे देश के शहरो, गांवों, मोहल्लों आदि में मेला लगना शुरू हो जाता है और सप्तमी से लेकर दसवीं तक लोग इस मेला का पूर्ण आनंद उठाते हैं।
इस अवसर पर रामलीला, जागरण आदि का आयोजन किया जाता है। विजयदशमी के साथ अनेक परंपरागत विश्वास जुड़े हुए हैं। इस दिन नीलकंठ का दर्शन शुभ माना जाता है।
गांव में इस दिन लोग जौ के अंकुर तोड़कर अपनी पगड़ी में खोसते हैं। कुछ लोग इसे कानो और और टोपीओं में लगाते हैं। उत्तर भारत में दस दिनों तक श्रीराम की लीलाओं का मंचन होता है।
विजयादशमी रामलीला का अंतिम दिन होता है। इस दिन रावण का वध किया जाता है तथा बड़ी धूमधाम से उसका पुतला जलाया जाता है। दशमी के दिन तरह-तरह की शोभा यात्रा निकाली जाती है।
यह शोभायात्रा अत्यंत आकर्षक होती है। इन शोभा यात्रा में हजारों संख्या में लोग शामिल होते हैं तथा मां दुर्गा की प्रतिमा को गांव या नगर, मुहल्ले में घुमाकर नदी में विसर्जन किया जाता है।
दुर्गा पूजा के लाभ
कोई भी त्यौहार सामाजिक सौहार्द्र, मैत्रीभाव, बंधुत्व को बढ़ाता है। लेकिन सबसे बड़ी सोच तो यह है, कि राष्ट्र की सबलता जिन बातों पर निर्भर करता है।
वह है – संपत्ति, विद्या, शारीरिक बल आदि के समुचित रूप में विद्वान होना। इस त्योहार के शुरू होते ही काफी लोगों को क्षणिक रोजगार मिल जाती है।
यह त्यौहार हमारी धार्मिक भावनाएं जागृत करता है। यह “बुराई पर अच्छाई की विजय” का स्मरण दिलाता है। यह हमें बुराई का अंत करने के लिए युद्ध की शिक्षा देती है।
यह हमारी नीरस जीवन में परिवर्तन लाती है। उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए अंततः हम कर सकते हैं कि, इस पर्व से हमें कई तरह की ज्ञान और अनुभव प्राप्त होती है।
दुर्गा पूजा से हानी
इस त्यौहार की कुछ हानियाँ भी है। जैसे- मूर्ति निर्माण के लिए मिट्टी कटने से मृदा प्रदूषण होता है। उच्च ध्वनि तरंगों में तरह-तरह के ध्वनि विस्तारक यंत्रों के बजने से ध्वनि प्रदूषण होता है।
हवन से निकलने वाले धुआ से वायु प्रदूषण होता है। आतिशबाजी के प्रयोग से ध्वनि एवं वायु दोनों ही प्रदूषण होता है। समाप्ति के उपरांत जलसमाधि से जल प्रदूषण होता है।
और सबसे मुख्य हानियाँ तो यह है कि, चंदा उगाही या अन्य किसी कारण को लेकर दबंग लोगों द्वारा बल का प्रयोग सामाजिक वैमनस्य पैदा करता है।
इनके अलावा मेला में भीड़ जुटने से कई जगह कई प्रकार की आपराधिक व सांप्रदायिक दुर्घटनाएं भी दुर्भाग्यवश हो जाया करती है।
दशहरा/दुर्गा पूजा से सम्बंधित कुछ FAQs
- भारत के अलावा और किस-किस देश में दुर्गा पूजा मनाई जाती है?
भारत के अलावा नेपाल और बांग्लादेश में भी दुर्गा पूजा बड़े धूम-धाम से मनाई जाती है। क्योंकि इन देशों में काफी संख्या में इंडियन रहते हैं।
- भारत में सबसे अच्छी दुर्गा पूजा कहाँ मनाई जाती है?
अगर आप दुर्गा पूजा का अच्छे से लुफ्त उठाना चाहते हैं, तो इसके लिए कोलकाता सबसे अच्छी जगह हैं। क्योंकि यही पूरे भारत में दुर्गा पूजा का सबसे बड़ा पंडाल लगता है। इसके अलावा गुहावटी के “कामाख्या देवी मंदिर” में भी दुर्गा पूजा सा सबसे बड़ा मेला लगता है।
- नवरात्र के पहले दिन किस देवी की पूजा की जाती है?
नवरात्र के पहले दिन अर्थात् कलश स्थापना के रोज “शैलपुत्री” की पूजा की जाती है।
- शैलपुत्री को किस रंग के चीजों से भोग लगाया जाता है?
माँ शैलपुत्री को सफेद रंग के चीजों से भोग लगाया जाता है। इस दिन माँ शैल पुत्री के भक्त पीले रंग के वस्त्र को धारण करके माँ को घी चढाते हैं।
- दुखों का नाश करने के लिए नवरात्री के किस माता की पूजा की जाती है?
मान्यता है, कि इस दिन घंटे की ध्वनि से “माँ चंद्रघंटा” अपनों भक्तों के सारे दुखों को हर लेती है। इसीलिए इस दिन “मखाने की खीर” से इन्हें भोग लगाया जाता है।
उपसंहार (Conclusion)
इस प्रकार हम निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, तो पाते हैं, कि यह त्योहार असत्य पर सत्य, अन्याय पर न्याय की, आसुरबल पर देवीबल की जीत है।
परंतु आज के परिवेश में हमारे देश के शहरों, नगरों, गली मोहल्लों और गांव में कुछ ऐसे लोग पैदा हो गए हैं। जो धीरे-धीरे हमारी भारतीय संस्कृति को भूलकर कुछ ऐसे-ऐसे काम कर डालते हैं।
जिससे इस पर्व का कोई महत्व नहीं रह जाता है। अतः हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हमारे भारतीय संस्कृति में इस महान पर्व के अवसर पर जो कुछ गलत काम हो जाया करती है।
हमें उन पर नियंत्रण करने की कोशिश करनी चाहिए। जिससे हमारे इस भारतीय संस्कृति के महापर्व का महत्व बरकरार रहे और ऐसा प्रतीत हो कि सच्च में दुर्गा पूजा (Durga Puja Par Nibandh) भारतीय संस्कृति का एक बड़ा ही प्रसिद्ध और पवित्र पर्व है।
जो संपूर्ण भारतवर्ष के जीवन के लिए सुख शांति और उन्नति का संदेश लेकर आती है।
ये भी पढ़े-