महात्मा गांधी पर निबंध (Hindi Essay Mahatma Gandhi) : इस संसार में कौन नहीं मरता? जो जन्म लेता है, वह अवश्य मरता है। जो इस संसार में आया है, उनका जाना भी निश्चित है।
परंतु इस संसार रूपी सागर मे उसी मनुष्य (Human) का जन्म सार्थक होता है, जिसके द्वारा जाति, धर्म, समाज और देश की उन्नति हो, महापुरुष वही कहलाते हैं। जिनका देश के प्रति और नव निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
“Great Man are Like Meteors, They Burn Themselves Out to Light the World”
अर्थात् महान पुरुष पुच्छल तारे (Tail Stars) की तरह होते है, जो स्वयं जलकर अपनी अस्थियों से संसार को देदीप्यमान कर देता है; और यह गौरव की बात है, कि हमारे देश में समय-समय पर अनेक महापुरुषों का जन्म होता रहा है।
उन्हीं महापुरुषों में से एक थे : महात्मा गांधी। जो भारत की तपोभूमि के महान सपूत थे। जिनके बारे में आज आप विस्तृत जानकारी हासिल करेंगे।
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- 1 महात्मा गांधी पर निबंध। Hindi Essay Mahatma Gandhi
- 1.1 गांधी जी की शिक्षा । Eduacation of Mahatma Gandhi in Hindi
- 1.2 दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी । Mahatma in South Africa
- 1.3 भारतीय राजनीति में गांधीजी की भूमिका । Role of Mahatma Gandhi in Indian Politics
- 1.4 गांधी जी की मृत्यु, बलिदान और राष्ट्रपिता, बापू, महात्मा की उपाधि
- 1.5 गांधी जी के प्रमुख विचार और उक्ति
महात्मा गांधी पर निबंध। Hindi Essay Mahatma Gandhi
तू कालोदधी का महास्तंभ आत्मा के नभ का तुंग केतु, बापू! तू मर्त्य-अमर्त्य, स्वर्ग-पृथ्वी, भू-नभ का महासेतु।
तेरा विराट यह रूप कल्पना पर नहीं समाता है, जितना कुछ कहूँ मगर कहने को शेष रह जाता है। उपर्युक्त पंक्ति राष्ट्रकवि दिनकर जी द्वारा गांधीजी के बारे में कहा गया है, जो पूर्णतया सत्य है।
देश जब गुलामी की जंजीर में जकड़ा हुआ था। उस समय ही कई महान आत्मा के साथ-साथ देव कृपा से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी जन्म हुआ। अपनी कर्तव्य निष्ठा एवं सत्य परायणता के कारण जो साधारण मानव से महामानव बन गए। वे है : मोहनदास करमचंद गांधी।
उन्होंने सत्य को ईश्वर माना और धर्म को अहिंसक आचरण के रूप में ग्रहण किया। महात्मा जी का व्यक्तित्व अपने आप में सत्य, अहिंसा और प्रेम का सच्चा स्वरूप था।
उनकी संपूर्ण जीवन (Whole Life) यात्रा अपने आप में समकालीन विश्व (Contemporary World) की मानवता को सत्राण, शोषण, ईर्ष्या-द्वेष आदि से मुक्ति दिलाने वाले सत्यनिष्ठ महापुरुष की अपराजेय आत्मा का विराल साक्ष्य है।
2 अक्टूबर 1869 ई० को भारत की धरती ने एक ऐसा महामानव पैदा किया, जिसने न केवल भारतीय राजनीति (Indian Politics) का नक्शा बदला; बल्कि संपूर्ण विश्व को सत्य, अहिंसा, शांति और प्रेम की अजय शक्ति के दर्शन कराए।
जो थे : महात्मा गांधी अर्थात् युग निर्माता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 ईस्वी में गुजरात के काठियावाड़ा के पोरबंदर नामक स्थान में एक कुलीन-वैश्य परिवार में हुआ, जो आज भारतीय तीर्थ स्थलों में अग्रणी है।
इनके पिता का नाम करमचंद्र गांधी (Karamchandra Gandhi) था, जो काठियावाड़ा रियासत के दीवान थे, और उनके माता का नाम पुतलीबाई (Putlibai) था, जो गृहणी होने के साथ-साथ एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।
गांधी जी की शिक्षा । Eduacation of Mahatma Gandhi in Hindi
महात्मा गांधी की प्रारंभिक शिक्षा (Primary Education) का शुभारंभ पोरबंदर के पाठशाला में ही हुआ। इनके माता-पिता ने उनका नाम मोहनदास रखा था।
वैसे तो मोहनदास अपने स्कूली जीवन में साधारण कोटि के छात्र थे। परंतु व्यावहारिक जीवन में उनकी विशेषता प्रकट होने लगी थी। उनमें सेवा भाव कूट-कूट कर भरा था।
मोहनदास पढ़ाई में एक सामान्य विद्यार्थी (Student) की तरह ही थे। हालांकि कभी-कभी उन्होंने भी पुरस्कार और छात्रवृत्तियां जीती।
साथ ही सन्न 1887 ई० मे उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी से मैट्रिक की परीक्षा पास की तथा उच्च शिक्षा के लिए भावानगर के श्यामलाल कॉलेज में गए। इसी क्रम में वे कानूनी पेशा (Legal Profession) के लिए योग्यता प्राप्त करने इंग्लैंड (England) चले गए और सन्न 1891 ईस्वी मे बैरिस्टर (Barrister) बनकर भारत लौटे।
अर्थात् अपने को वकालत के लिए योग्य बनाकर वे स्वदेश लौटे और मुंबई हाई कोर्ट (Mumbai High Court) में उन्होंने वकालत आरंभ की।
परंतु इस क्षेत्र में उन्हें सफलता (Success) नहीं मिली और सबसे दुखद पहलू तो यह है, कि 13 वर्ष की आयु में ही उनकी शादी कर दी गई थी।
दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी । Mahatma in South Africa
वकालत के सिलसिले में एक बार उन्हें दक्षिण अफ्रीका (South Africa) जाना पड़ा; या फिर हम कर सकते हैं, कि मुंबई के दादा अब्दुल्लाह एवं कंपनी के मालिक के मुकदमे की पैरवी हेतु सन्न 1893 ईस्वी में सौभाग्यवस उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाने का मौका मिला।
वहां उन्हें पगड़ी उतारने को कहा गया, रेल गाड़ी के प्रथम श्रेणी में टिकट रहने पर भी चढ़ने नहीं दिया गया, सभी जगह रंगभेद की व्यापकता नजर आई। इतना भेदभाव सहन करने के बावजूद भी वे लगभग 20 वर्षों तक दक्षिण अफ्रीका में रहे।
वहां के हिंदुओं की दुर्दशा को देखकर उनके हृदय को काफी आघात पहुंचा। प्रवासी हिंदुओं (Migrant Hindus) का प्रत्येक स्थान पर अनादर होता और उनकी बातों को, उनके दुखों को वहां सुनने वाला कोई नहीं था।
स्वयं गांधीजी को वहां के आदिवासी कुली बैरिस्टर कहते थे। उन्होंने सन्न 1894 ईस्वी में नटाल कांग्रेस की स्थापना की। इसके तत्वाधान में उन्होंने उन दुखों को दूर करने के लिए गौरी सरकार के विरुद्ध आंदोलन किया। जिससे भारतवासी पीड़ित थे।
अंततः गांधी जी को वहां भारी सफलता मिली। यह उनके जीवन का एक युगांतरी घटना सिद्ध हुआ। सत्याग्रह का पहला प्रयोग उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में ही किया था।
अतः हम कह सकते हैं, कि गांधीजी के सामाजिक क्रांतिकारी जीवन का श्री गणेश 1893 की अफ्रीका यात्रा से ही होता है। तत्पश्चात् वे 9 जनवरी 1915 ईस्वी में स्वदेश लौटे।
भारतीय राजनीति में गांधीजी की भूमिका । Role of Mahatma Gandhi in Indian Politics
जनवरी 1915 ई० मे स्वदेश लौटने के पश्चात भारतीयों (Indians) ने उनका भव्य स्वागत किया। परंतु दक्षिण अफ्रीका में मिली असाधारण विजय की भावना ने उन्हें देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्रेरित किया और वे भारत लौटने के साथ ही यहां के राजनीति में कूद पड़े। गांधीजी ने रचनात्मक कार्यों के लिए अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की।
इसी समय बिहार में अंग्रेजों द्वारा हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसानों को खाद्यान्न के बजाय नील और अन्य नकदी फसलों की खेती करने के लिए बाध्य कर दिए गए। यहां पर नील की खेती करने वाले किसानों पर बहुत अत्याचार हो रहा था।
अप्रैल 1917 में राजकुमार शुक्ला के निमंत्रण पर वे नील कृषकों की स्थिति का जायजा लेने बिहार पहुंचे।
बिहार के किसानों की दयनीय स्थिति देखकर उन्हें काफी दुख हुआ और उन्होंने अपने नेतृत्व में किसानों की स्थिति में सुधार लाने के लिए बिहार के चंपारण जिले में 1917 में सत्याग्रह किए। जिन्हें चंपारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। उन्होंने सत्य और अहिंसा को आधार बनाकर राजनीति स्वतंत्रता का आंदोलन छेड़ दिया।
सन्न 1920-22 ई० के बीच उन्होंने अंग्रेज सरकार के विरोध और असहयोग आंदोलन शुरू कर के खादी प्रचार, सरकारी वस्तुओं का बहिष्कार और विदेशी वस्त्रों की होली आदि का कार्य संपन्न कराए।
उनके द्वारा प्रारंभ किया गया यह प्रथम जन आंदोलन था। पुनः 12 मार्च 1930 ईस्वी को साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ दांडी समुद्र तट तक गांधी ने ऐतिहासिक यात्रा शुरू की।
24 दिनों में 250 किलोमीटर की पदयात्रा के पश्चात 5 अप्रैल को वे दांडी पहुंचे तथा 6 अप्रैल को समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया और इसे नमक सत्याग्रह के नाम से जाना गया।
8 अगस्त 1942 ईस्वी को द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) के समय उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) प्रारंभ किए। जिनका मुख्य उद्देश्य भारत मां को गुलामी की जंजीर से आजाद कराना था।
इस आंदोलन की शुरुआत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुंबई अधिवेशन से हुई थी; और इस आंदोलन का इतना गहरा असर हुआ कि सभी भारतवासी एकजुट होकर अनेक प्रयासों द्वारा अंग्रेजो को देश छोड़ने के लिए विवश कर दिया।
इन आंदोलनों के क्रम में कई बार उन्हें जेल भी जाना पड़ा। तत्पश्चात 15 अगस्त 1947 ईस्वी को हमें महात्मा गांधी के इन प्रयासों द्वारा स्वाधीनता प्राप्त हुआ।
गांधी जी की मृत्यु, बलिदान और राष्ट्रपिता, बापू, महात्मा की उपाधि
4 जून 1944 ईस्वी को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया था; तथा गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने गांधी जी को महात्मा कह कर उनके सही स्वरूप को प्रतिष्ठित किया।
इसी प्रकार सारे देश के करोड़ों जन-गण ने भी उन्हें अपनी सहज श्रद्धा और प्रेम देते हुए बापू कह कर पुकारा।
भारत-पाक विभाजन हुआ, जिसमें देश के विभिन्न स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगे होने लगे। उन्हें रोकने के लिए गांधी जी ने आमरण अनशन रखा जिससे सांप्रदायिकता कि आग तो बुझ गई, परंतु वे उसके शिकार हो गए।
अंततः 30 जनवरी 1948 की शाम को 6:00 बजे जब वह दिल्ली के बिड़ला भवन में प्रार्थना सभा में जा रहे थे। उसी समय नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) नामक एक सिरफिरे व्यक्ति ने उन्हें गोली मार दी और उनकी मृत्यु हो गई।
तब से आज तक समस्त भारतवासी प्रत्येक वर्ष 30 जनवरी को उनकी याद को शहीद दिवस (Sahid Divas) के रूप में मनाते हैं, और नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
गांधी जी के प्रमुख विचार और उक्ति
गांधीजी ने भारत की आजादी को सारी मानवता की मुक्ति का अभिन्न अंग माना। उनका विचार था —
मैं चाहता हूं, कि मेरा देश आजाद हो। जिसके लिए यदि जरूरत पड़े तो विश्व को जीवन दान करने के लिए बलि दे सकूं।
गांधी जी ने अपने जीवन को सत्य का प्रयोग कहा।
वस्तुतः गांधी जी के सारे विचार, क्रियाकलाप, कार्यक्रम आदि अपने आप में सत्यमेव जयते (Satyamev Jayate) के विरल भारतीय संकल्पना को अद्भुत रूप से सार्थक करता है।
भारत की स्वतंत्रता को गांधी जी ने केवल राजनीतिक संदर्भ में ही परिभाषित नहीं किया, बल्कि उनके विचार से सच्ची और पूर्ण स्वतंत्रता का अर्थ था : सभी क्षुद्रताओं भेदभाव, अत्याचार, आलस्य, विलासिता आदि से मुक्त होना।
अपने सपनों के भारत पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा है, कि —
मैं एक ऐसे भारत के लिए काम करूंगा, जिसमें गरीब से गरीब भी यह महसूस करें कि यह देश उसका है, और उसके निर्माण में उसकी जोरदार आवाज हो।
गांधीजी, सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। उन्होंने सभी धर्मों का सामान आदर करते हुए एक उक्ति लिखे हैं —
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान।
उपसंहार (Conclusion)
निश्चयपूर्वक गांधी जी ने अपने देशवासियों के साथ मानवता की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए अपनी अंतरात्मा की पुकार पर बुनियादी समस्याओं का हल खोजने का अथक प्रयत्न किया और वे सफल भी हुए।
अंततः निश्चित तौर पर हम कर सकते हैं, कि महात्मा गांधी उन महापुरुषों में से एक थे, जिनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता।
तभी तो गांधी जी की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए प्रसिद्ध वैज्ञानिक तथा दार्शनिक आइंस्टाइन (Einstein) ने कहा था कि —
आने वाले पीढ़ियां इस बात पर विश्वास करने से इंकार कर देंगी कि कभी महात्मा गांधी भी मनुष्य रूप में भूतल पर विचरण करते थे।
सचमुच गांधीजी की शहादत अपने आप में विश्वशांति और मानव प्रेम से जुड़ा हुआ बहुत बड़ा प्रश्न है, और उत्तर भी।
इसलिए वह आज भी प्रसांगिक है, और भविष्य में भी रहेंगे। यही कारण है, कि आज भी गांधीजी धातु में गढ़ी सजावट की बेजान मूर्ति न लगकर स्पंदित-प्रेरणा पुरुष प्रतीत हो रहे हैं।
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