Mahadevi Verma Ka Jeevan Parichay (महादेवी वर्मा का जीवन परिचय) : Friends,अगर आप भी जीवनी पढ़ने के शौकीन हैं, तो निश्चित रूप से आज का यह Artical आप के लिए है।
क्योंकि आज मैं महादेवी वर्मा की जीवनी अर्थात Mahadevi Verma Ka Jeevan Parichay (Biography of Mahadevi Verma in Hindi) लिखने का प्रयास करी हुँ।
आज का यह आर्टिकल न सिर्फ आपके पढने में काम आएगा। बल्कि इसकी सहायता से आप महादेवी वर्मा पर निबंध (Essay on Mahadevi Verma in Hindi) भी लिख सकते है।
इस आर्टिकल के माध्यम से मैं आप सबको महादेवी वर्मा के बारे (About Mahadevi Verma in Hindi) में संपूर्ण जानकारी देने का अथक प्रयास करूंगी।
तो चलिए चलते हैं, अपने मुद्दों की ओर और जानते हैं, इस महान कवियत्री के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें। उम्मीद करती हूँ कि आज का यह Artical आप लिए उपयोगी होगी।
Mahadevi Verma Ka Jeevan Parichay । महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
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हमारे पृथ्वी पर अरबों लोग मौजूद हैं, परंतु उनमें से कुछ ही अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से अपने आप को महान बनाता है। उन्हीं महान व्यक्तित्व में से एक महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma in Hindi) भी हैं।
जिन्होंने अपने कर्म से हिंदी साहित्य जगत के पृष्ठों पर महत्वपूर्ण छाप छोड़ी। महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य जगत की एक महानतम कवियत्री थी।
इन्होंने हिंदी साहित्य में कई गद्य और पद्य खंडों का सृजन किया है। महादेवी वर्मा को छायावादी युग का एक महान स्तंभ माना जाता है। इतना ही नहीं बल्कि महादेवी वर्मा को ‘आधुनिक मीरा’ के नाम से भी जाना जाता है।
क्योंकि इन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से एक प्रेमी का एक -दूसरे से दूर होने का दर्द, पीड़ा और विरह को बहुत ही भावनात्मक रूप में वर्णित किया है।
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य जगत की बहुत ही विख्यात कवियत्री है। इनके बारे में महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने कहा है कि- ‘महादेवी वर्मा हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती है।‘
महादेवी वर्मा जी एक व्याख्यात कवियत्री होने के अलावा एक महान समाज सुधारक भी थी। उन्होंने महिलाओं के समस्याओं को उजागर किया और उसके निष्पादन हेतु कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
इतना ही नहीं बल्कि महादेवी वर्मा ने महिलाओं को समाज में उचित स्थान और अधिकार दिलाने का भी अथक प्रयास की। महादेवी वर्मा को जीव-जंतुओं से बहुत प्यार था।
यही कारण है कि वर्मा जी ने जीव-जंतुओं से संबंधित कई सुप्रसिद्ध कहानियां भी लिखी है। महादेवी वर्मा अपने समय में इतनी प्रसिद्धि थी की इनको तत्कालीन सभी राजनीतिज्ञ जानते थे।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि महादेवी वर्मा की रचनाओं में एक प्रेमी और प्रेमिका की जीवन का उल्लेख बहुत ही भावनात्मक रूप में मिलता है।
महादेवी वर्मा का आरंभिक जीवन । Early Life of Mahadevi Verma
कहा जाता है, जब धरती पर किसी महान अवतार का जन्म होना होता है। तो, वह अपने जन्म से पहले ही आने का कोई न कोई संकेत जरूर देती है। महादेवी वर्मा का जन्म (Essay on Mahadevi Verma in Hindi) एक ऐसे परिवार में हुआ था।
जहां पिछले सात पीढ़ियों से और लगभग 200 वर्षों से किसी पुत्री का जन्म नहीं हुआ था। परिवार में इतने लंबे समय बाद पुत्री के जन्म से परिवार के सदस्यों का खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
महादेवी वर्मा के पिता ने तो अपनी पुत्री को देवी अवतार मानकर ही उनका नाम ‘महादेवी’ रखा। महादेवी वर्मा का जन्म (Mahadevi Verma ka Janm) 26 मार्च 1907 को होली के दिन फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में एक संपन्न परिवार में हुआ था।
महादेवी वर्मा के पिता का नाम बाबू गोविंद प्रसाद वर्मा एवं माता जी का नाम हेमरानी देवी थी। वर्मा जी के पिता बाबू गोविंद प्रसाद जी एक विद्यालय के अध्यापक थे और माताजी बहुत ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।
वह अपना अधिकांश समय पूजा-पाठ और वेद पुराण के पठन-पाठन में ही गुजारती थी। उनकी संगीत में भी बहुत अच्छी रुचि थी। वर्मा जी बचपन से ही शांत एवं गंभीर स्वभाव की थी।
महादेवी वर्मा चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी। वर्मा जी की छोटी बहन का नाम श्यामा देवी (जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष और उपकुलपति डॉ. बाबूराम सक्सेना की धर्मपत्नी थी)।
इसके अलावा दो छोटे भाई जगमोहन वर्मा और मनमोहन वर्मा थे। महादेवी वर्मा को बचपन से ही चित्र बनाने का शौक था। अपने शौक की पूर्ति हेतु वह विभिन्न प्रकार की चित्र बनाया करती थी।
इन सब बातों के अतिरिक्त वर्मा जी को अपने शैशवावस्था से ही जीव-जंतुओं से बहुत ही ज्यादा प्रेम था। वह बचपन में पशु पक्षियों के देखभाल और खेलकूद में ही अपना समय बिताती थी।
एक समय था जब महादेवी वर्मा बौद्ध दीक्षा ग्रहण कर बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थी। परंतु राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद वह अपना विचार त्याग दी और समाज सेवा में लग गई।
महादेवी वर्मा का बचपन बहुत ही सुख-सुविधाओं और संपन्नता का था। इतना ही नहीं बल्कि वर्मा जी की बचपन बहुत ही लाल-प्यार और पालन-पोषण में बिता।
महादेवी वर्मा का शिक्षा-दीक्षा । Education of Mahadevi Verma
महादेवी वर्मा एक ऐसी प्रतिभाशाली महिला थी। जिसकी प्रतिभा का लोहा लोग उसके बचपन में ही देख चुके थे। वर्मा जी की शिक्षा-दीक्षा का प्रारंभ 5 वर्ष की अवस्था में ही सन 1912 ईस्वी में इंदौर के “मिशन स्कूल” से प्रारंभ हुई थी।
इतना ही नहीं बल्कि चित्रकला, संगीत, अंग्रेजी और संस्कृत की शिक्षा अलग से अध्यापकों द्वारा उनको घर पर ही दी जाती थी। महादेवी वर्मा के बारे में (Information About Mahadevi Verma in Hindi) यह बात भी सत्य है कि,
उनकी विवाह कम उम्र में ही सन 1916 ईस्वी में कर दी गई। इस कारण कुछ दिनों के लिए वर्मा जी के शिक्षण में व्यवधान भी आया। परंतु 1919 ईस्वी में वर्मा जी का शिक्षा-दीक्षा पुनः आरंभ हुआ
और उन्होंने प्रयागराज (इलाहाबाद) में “क्रास्थवेट कॉलेज” में दाखिला ली। साथ ही साथ वह कॉलेज के हॉस्टल में ही रहने लगी। महादेवी वर्मा के प्रतिभा को यहीं से पड़ लगना आरंभ हुआ था।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि, महादेवी वर्मा को बचपन से ही लिखने का बहुत शौक था । यही कारण है कि वह मात्र 7 वर्ष की अवस्था से ही कविताएं लिखनी प्रारंभ कर दी थी।
महादेवी वर्मा 1921 ईस्वी में आठवीं कक्षा पास की और अपने प्रांत भर में प्रथम स्थान लाकर अपने पिता और प्रांत का नाम रोशन की।महादेवी वर्मा इतनी प्रतिभावान थी कि,
जब वह 1925 ईस्वी में मैट्रिक की परीक्षा पास की तब तक वह एक सफल कवियत्री के रूप में विख्यात हो चुकी थी। उनकी कविताएं इतनी कम उम्र में ही पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगी।
वर्मा जी अपनी विद्यार्थी जीवन में राष्ट्रीय और सामाजिक जागृति संबंधी कविताएं लिखती थी। इतना ही नहीं बल्कि उस समय के कविताओं के बारे में वर्मा जी ने खुद कही है कि “विद्यालय के वातावरण में ही खो जाने के लिए लिखी गई थी उनकी समाप्ति के साथ ही मेरी कविता का पैसा भी समाप्त हो गया।”
महादेवी वर्मा अपने हिंदी के अध्यापक से बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुई थी और इससे उन्होंने ब्रजभाषा में कुछ कविताएं भी लिखी। साथ ही साथ खड़ी बोली से प्रभावित होकर।
महादेवी वर्मा ने ‘हरिगीतिका’ और ‘रीला’ छंदों में खड़ी बोली में काव्य लिखना प्रारंभ कर दी। सबसे खास बात तो यह है कि, वर्मा जी अपनी मां की एक करुणा भरी कथा को सुनकर सौ छंदों वाला एक खंड काव्य भी लिख डाली थी।
महादेवी वर्मा के प्रथम काव्य संग्रह ‘निहार’ की अधिकांश कविताएं उनकी विद्यार्थी जीवन से ही संबंधित है। वास्तव में वह एक प्रतिभाशाली महिला थी।
महादेवी वर्मा का वैवाहिक जीवन। Married Life of Mahadevi Verma
महादेवी वर्मा का विवाह उस छोटी उम्र में कर दी गई। जिस समय वह विवाह का मतलब और विवाह के रस्मों-रिवाजों से बिल्कुल अनजान थी।
वर्मा जी का विवाह मात्र 9 वर्ष की उम्र में सन 1916 ईस्वी में उनके बाबा बांके बिहारी ने उनका विवाह बरेली के पास नवाबगंज के कस्बे में “श्री स्वरूप नारायण वर्मा” से कर किया गया।
उस समय श्री स्वरूप नारायण वर्मा दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। सभी बातों से अनजान महादेवी वर्मा की विवाह की तारीख तय हो गई। जब उनकी बारात आयी तो वह खुद भी भाग कर सबके बीच जाकर बारात देखने लगी।
और उन्हें जब व्रत रखने को कहा गया तो, वह मिठाई वाले कमरे में बैठकर खूब मिठाइयां खायी। महादेवी वर्मा को उनकी नाइन ने अपने गोद में लेकर फेरे दिलवाए।
और जब सुबह उनकी आंखें खुली तो अपने कपड़े में गांठ देखकर वह आश्चर्यचकित हो गई और गांठ खोलकर भाग आयी। सबसे रोचक बात तो यह है कि, महादेवी वर्मा जी ने कभी पति-पत्नी के संबंधों को स्वीकार नहीं करी।
यह बात आज भी रहस्य बना हुआ है। इस संदर्भ में विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने विभिन्न तर्क दिए हैं। कविवर गंगा प्रसाद जी का कहना है कि “ससुराल पहुंचकर महादेवी वर्मा ने जो उत्पात मचाया, उसे सिर्फ ससुराल वाले ही जानते हैं।
—-रोना बस रोना। नई बहू के स्वागत समारोह का उत्सव फीका पड़ गया और घर में एक आतंक छा गया। फलस्वरुप ससुर महोदय दूसरे दिन उन्हें वापस लौटा गए।”
विवाहित जीवन के प्रति महादेवी वर्मा के मन में विरक्ति उत्पन्न हो गई। जब श्री नारायण वर्मा के पिता की मृत्यु हो गई तो वह कुछ दिनों तक अपने ससुर के पास ही रहे,
परंतु अपने पुत्री की मनोदशा को देखकर उनके बाबूजी ने श्री स्वरूप नारायण वर्मा को इंटर करवा कर लखनऊ मेडिकल कॉलेज में दाखिला दिला कर।
उनके रहने का प्रबंध भी वही कर दिया। महादेवी वर्मा जी जब प्रयागराज में पढ़ती थी, तब नारायण वर्मा उनसे मिलने वहां आते थे। परंतु वर्मा जी उदासीन बनी बनी रही।
इसके बावजूद भी श्री नारायण वर्मा से एक स्त्री-पुरुष के रूप में उनके संबंध मधुर बने रहे। कभी-कभी दोनों के बीच पत्राचार भी होता था।
एक विचारणीय तथ्य यह भी है कि, श्री नारायण वर्मा ने महादेवी वर्मा के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किए। महादेवी वर्मा के जीवन के बारे में यह बात सर्वदा सत्य है कि,
वह अपना जीवन एक सन्यासिनी की भांति बिताई और सन्यासिनी की भांति जीवन भर से श्वेत वस्त्र धारण की, तख्त पर सोयी और कभी दर्पण नहीं देखी।
अंत में 1966 ईस्वी में अपने पति के मृत्यु के पश्चात वह प्रयागराज में स्थाई रूप से रहने लगी।
महादेवी वर्मा का सामाजिक जीवन। Social Life of Mahadevi Verma
महादेवी वर्मा एक ऐसी शख्सियत थी, जिसका समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान था। महादेवी वर्मा बहुत ही प्रसिद्ध थी। यही वजह है कि उनकी पहचान तत्कालीन सभी राजनीतिज्ञों और साहित्यकारों से थी।
महादेवी वर्मा महात्मा गांधी से बहुत ही ज्यादा प्रभावित थी। वर्मा जी बहुत ही गंभीर किस्म की महिला थी। कॉलेज के दिनों में महादेवी वर्मा की एक मित्र थी। जिसका नाम सुभद्रा कुमारी चौहान थी।
वह महादेवी वर्मा को लड़कियों के झूंड में ले जाकर कहती -“सुनो, ये कविता भी लिखती है।” उनके जन्मदिन पर या होली अथवा रक्षाबंधन त्यौहार में उनके घर पर उनसे मिलने वालों का जमावड़ा लगा रहता था।
महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के बीच भाई-बहन का रिश्ता जग-जाहिर है। सुमित्रानंदन पंत, गोपीकृष्ण गोपेश को भी महादेवी वर्मा राखी बांधती थी।
इतना ही नहीं बल्कि सुमित्रानंदन पंत भी उन्हें राखी बांधते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि, महादेवी वर्मा ने एक नई प्रथा की शुरुआत की। जिसमें स्त्री-पुरुष को बराबरी का दर्जा दिया गया और दोनों एक-दूसरे को राखी बांधते थे।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि, महादेवी वर्मा राखी को रक्षा का नहीं बल्कि स्नेह का प्रतीक मानती थी। महादेवी वर्मा के करीबियों में गंगा प्रसाद पांडे जी का नाम सबसे महत्वपूर्ण है।
महादेवी वर्मा ने गंगा प्रसाद पांडे जी की पोती का कन्यादान स्वयं से किया था। इतना ही नहीं बल्कि पांडे जी का पुत्र रामजी पांडे ने महादेवी वर्मा के अंतिम समय में उनकी खूब सेवा की थी।
महादेवी वर्मा ने महिलाओं को समाज में उचित स्थान दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने महिला सशक्तिकरण और महिला शिक्षा पर विशेष जोर दिया। वर्मा जी का तत्कालीन समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान था।
महादेवी वर्मा कार्यशील जीवन। Working Life of Mahadevi Verma
महादेवी वर्मा की कार्यशील जीवन बहुत ही सम्मान पूर्ण रही है। उन्होंने अपने कार्यशील जीवन को अध्यापन से शुरू किया। 1932 ईस्वी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में मास्टर डिग्री (M.A) हासिल करी।
इसके बाद उन्होंने महिला शिक्षा हेतु ‘प्रयाग महिला विद्यापीठ’ की स्थापना की और वह आजीवन प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य बनी रही।
इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने एक मासिक पत्रिका ‘चांद’ का अवैतनिक संपादन भी किया। महादेवी वर्मा देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दी।
महादेवी वर्मा एक महान लेखिका के अतिरिक्त एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने समाज में महिलाओं की दयनीय दशा को सुधारने का महत्वपूर्ण काम किया।
महादेवी वर्मा अपने कृतियों के माध्यम से महिलाओं के दुख, दर्द और दुर्दशा का बहुत ही मार्मिक रूप में वर्णन किया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उन्होंने ‘महिला कवि सम्मेलन’ की भी शुरुआत की।
जिसका पहला सम्मेलन प्रयाग “महिला विद्यापीठ” में आयोजन किया गया। महादेवी वर्मा बौद्ध धर्म के उपदेशों से बहुत ही ज्यादा प्रभावित थी। यही नहीं वह बौद्ध भिक्षुणी भी बनना चाहती थी।
हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा का योगदान।
हिंदी साहित्य जगत में महादेवी वर्मा का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी अनमोल रचनाएं हिंदी साहित्य जगत में काफी प्रसिद्ध है। उन्होंने अपनी रचनाओं से सामाजिक कुप्रथाओं और महिलाओं को स्थिति को उजागर किया है।
उनकी रचनाओं में प्रेम, विरह और दर्द का मार्मिक वर्णन मिलता है। वह एक प्रेमी के दर्द और पीड़ा को भी बहुत ही भावनात्मक रूप में वर्णन की है। उन्होंने अपने गद्य और पद्य खंडों का सृजन कर हिंदी साहित्य जगत में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
महादेवी वर्मा की रचनाएं (Mahadevi Verma ki Rachnayen)
महादेवी वर्मा ने कई सुप्रसिद्ध गद्य और पद्य खंडों का सृजन किया है। उन्होंने अपनी रचना के माध्यम से अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
महादेवी वर्मा की रचनाओं का हिंदी साहित्य जगत में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी रचनाएं ह्रदय परिवर्तन करने के योग्य है।महादेवी वर्मा के कुछ गद्य साहित्य निम्नलिखित हैं –
- रेखाचित्र- अतीत के चलचित्र(1941), स्मृति की रेखाएं(1943)
- संस्मरण- पथ के साथी(1956), मेरा परिवार(1972),संस्मरण(1983)
- निबंध- संकल्पिता(1969), श्रृंखला की कड़ियां(1942)
- ललित निबंध- क्षणदा(1956)
- प्रसिद्ध कहानियां- गिल्लू
- संस्मरण रेखाचित्र और निबंधों का संग्रह- हिमालय(1963)
महादेवी वर्मा की कविताएं (Poem of Mahadevi Verma) : महादेवी वर्मा की कुछ सुप्रसिद्ध कविताएं इस प्रकार हैं-
- दीपशिखा-1942
- नीहार-1930
- प्रथम आयाम-1974
- अग्नि रेखा-1990
- नीरजा-1934
- रश्मि-1931
- सांध्यगीत-1936
- सप्तपर्णा-1959
महादेवी वर्मा की बाल साहित्य। Mahadevi Verma’s Children’s Literature
महादेवी वर्मा ने बच्चों के लिए भी कई साहित्य की रचना की है। उनकी बाल रचनाओं में उनके अपने बचपन के दिन का वर्णन साफ-साफ मिलता है।
महादेवी वर्मा के कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध बाल रचनाएं निम्नलिखित हैं –
- आज खरीदेंगे हम ज्वाला
- ठाकुर जी भोले हैं
महादेवी वर्मा की भाषा शैली । Language Style of Mahadevi Verma
महादेवी वर्मा की रचनाओं की भाषा बेहद ही सरल और सुगम है । जिसे लोग आसानी से समझ जाते हैं। महादेवी वर्मा ने अपनी रचनाओं में मुहावरे, अलंकारों और लोकोक्तियों का इस्तेमाल किया है।
इतना ही नहीं बल्कि महादेवी वर्मा ने अपनी रचनाओं में हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू और बांग्ला भाषा के शब्दों को भी बड़े ही शानदार ढंग से उपयोग किया है।
महादेवी वर्मा ने अपनी रचनाओं को भावनात्मक, व्यंग्यात्मक, विवेचनात्मक, वर्णनात्मक एवं अलंकारिक इत्यादि शैली में लिखकर अपने रचनाओं को एक अलग पहचान दिलवाई है।
उनकी अलग भाषा शैली के कारण ही उनकी रचनाओं को हिंदी साहित्य में एक अलग स्थान प्राप्त हुआ है। महादेवी वर्मा हिंदी के अतिरिक्त संस्कृत की भी बहुत अच्छे जानकार थी। यही कारण है कि उनकी भाषा की सबसे बड़ी खासियत संस्कृतनिष्ठा है।
पशु-पक्षियों के प्रति महादेवी वर्मा का लगाव ।
महादेवी वर्मा का पशु पक्षियों के प्रति लगाव बहुत ही ज्यादा था। वह बचपन से ही पशु पक्षियों का ध्यान रखती थी। उन्होंने अपना बचपन पशु-पक्षियों के देखभाल और उनके साथ खेलकूद में ही बिताया I
ठंड के महीनों में कुँ कुँ करता पिल्ला का ध्यान वह बहुत ही अच्छी तरह रखती थी। पशु-पक्षियों के प्रति उनकी भावना दया और करुणा भरी थी।
महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध कहानी ‘गिल्लू’ भी पशु-पक्षियों के प्रति महादेवी वर्मा के प्रेमभाव को दर्शाता है। वह काफी दयामयी थी। महादेवी वर्मा की रचनाओं से पता चलता है कि वह अपने घर में विभिन्न प्रकार के जीव-जंतु पाल रखी थी।
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि पशु-पक्षी भी महादेवी वर्मा को बहुत ही ज्यादा पसंद करते थे। महादेवी वर्मा का पशु-पक्षियों के प्रति लगाव जग-जाहिर है।
महादेवी वर्मा को मिले सम्मान और पुरस्कार।
महादेवी वर्मा को उनके सराहनीय कार्य के लिए कई पुरस्कारों से विभूषित किया गया। हिंदी साहित्य जगत में महादेवी वर्मा द्वारा किए गए कार्य को भुलाया नहीं जा सकता है।
उनकी यादों को हम उन्हें मिले इन पुरस्कारों के माध्यम से हमेशा तरोताजा रखेंगे। महादेवी वर्मा को मिले सम्मान और पुरस्कार निम्नलिखित हैं –
- महादेवी वर्मा जी को हिंदी साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए सन 1956 ईस्वी में पद्मभूषण से नवाजा गया।
- महादेवी वर्मा को वर्ष 1979 में साहित्य अकादमी फेल्लोशिप से नवाजा गया। वह इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली प्रथम महिला थी
- 1982 ईस्वी में महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया ।
- महादेवी वर्मा को सन 1988 ईस्वी में मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण की उपाधि से विभूषित किया गया।
इन सब पुरस्कारों के अलावा महादेवी वर्मा को वर्ष 1934 में सेकसरिया पुरस्कार, 1942 में द्विवेदी पदक, 1943 में मंगला प्रसाद पुरस्कार और 1943 में ही भारत भारती पुरस्कार से नवाजा गया।
महादेवी वर्मा को मिले ये सभी पुरस्कारें उनकी प्रतिभा को चार चांद लगाती है।
महादेवी वर्मा की मृत्यु । Death of Mahadevi Verma
महादेवी वर्मा एक ऐसी महान लेखिका थी। जिन्होंने अपने कृतियों से हिंदी साहित्य जगत के पृष्ठों पर अपना नाम स्वर्णोक्षरों में अंकित करवायी।
वह जीवन भर साहित्य की साधना करती रही। उन्होंने अपने कर्म से दलितों, महिलाओं और असहायों के हृदय में अपना स्थान बनायी। महादेवी वर्मा की सोच दूरदर्शी और महान थी।
उनकी प्रशंसा किए बिना महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला भी नहीं रह पाए। इसीलिए तो उन्होंने महादेवी वर्मा को सरस्वती की संज्ञा भी दे डाला।
इस महान व्यक्तित्व वाली महिला ने इस संसार को 11 सितंबर 1987 को छोड़कर चली गई। उनके जाने से मानो हिंदी साहित्य जगत के एक युग का अंत हो गया।
उपसंहार(Conclusion)
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि, महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य जगत की महान कवियत्री थी। साथ ही साथ वह एक महान समाज सुधारक भी थी। उनकी रचना अद्भुत है।
हम महादेवी वर्मा को हिंदी साहित्य जगत की एक युग कह सकते हैं। वास्तव में वह एक महान महिला थी। उनके द्वारा किए गए कार्य सराहनीय है। हमें इस भारत की बेटी पर गर्व है।
महादेवी वर्मा का संक्षिप्त परिचय । Mahadevi Verma in Hindi
पूरा नाम (Full Name) : महादेवी वर्मा
जन्मदिन (Date of Birth) : 26 मार्च 1907 फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु (Death) : 11 सितम्बर 1987 प्रयाग
पिता का नाम (Father’s Name) : बाबू गोविंद प्रसाद वर्मा
माता का नाम (Mother’s Name) : हेमरानी देवी
पति का नाम (Husband Name) : श्री स्वरूप नारायण वर्मा
शिक्षा (Education) : एम.ए (संस्कृत)
प्रमुख रचनाएं (Famous Books) : नीरजा, निहार, दीपशिखा, अतीत के चलचित्र, पथ के साथी, स्मृति की रेखाएं, मेरा परिवार, श्रृंखला की कड़ियां, रश्मि ।
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